Friday, March 9, 2007

सर्वधर्म सार



“अन्धातामिस्त्रा ह्यसूर्या नाम ते लोका (लोकाः प्रेत्य)
स्तेभ्यः प्रतिविधीयन्ते य आत्मधातिन अत्येवमृषयो मन्यते।”

उत्तररामचरित – 4/9

“गाढ़ अंधकार से युक्त तथा सूर्य (प्रकाश से) रहित वे प्रसिद्ध लोक उनके लिये नियुक्त किये जाते हैं जो आत्मघात करने वाले होते हैं, ऐसा ऋषि लोग मानते हैं।”

‘स्कन्द पुराण’ में स्पष्ट अल्लेख है कि “नर हत्या”- किसी नर की साधारण चोट से होने वाली वह मृत्यु जिसमें मारने वाले का यह उद्देश्य न हो कि वह मर जाय; दूसरे शब्दों में आत्म रक्षार्थ अथवा अपने बचाव में किये गये प्रतिकार से होने वाली हत्या जिसमें मारने वाले का जान से मारने का अभिप्राय न हो तो भी वह-पाप है जिसके दुष्परिणामस्वरूप नरक की यातना सहनी पड़ती है।

“सतिगुर अगै अरदासि करि साजनु देइ मिलाइ।
साजनि मिलिऐ सुखु पाइआ जमदूत मुए बिखु खाई।।”


गुरूग्रन्थ साहिब- सिरीरागु महला- 1/5

“हे भाई, परमात्मा से मिलने के लिये सतगुरू से बिनती करो। प्रभु-मिलन हो जाय तो यथार्थ सुख का आभास होता है, यमदूत तो विष खाकर मर जाते हैं।”

“बिन गुर सारे भरमि भुलाए।
मनमुख अंधे सदा बिखु खाए।।
जम डंडु सहहि सदा दुखु पाए।।”


गुरूग्रन्थ साहिब-गउड़ी बैरागणि महला-3/4

“स्वेच्छाधारी मनुष्य सत्यस्वरूप प्रभु के रूप गुरू से अलग रहकर दुविधा के कारण कुमार्गगामी बने रहते हैं। माया के मोह में अंधे वे सदा विष ही खाते हैं, जिससे वे आत्मिक मौत की सजा सहते हैं और दुःख पाते हैं।”

हजरत मोहम्मद ने कहा है कि ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को उसकी प्रतिष्ठा और भाग्य दी है, किन्तु उसकी मृत्यु की घड़ी कब आएगी, इसका निर्णय अपने पास रखा है। इसलिए व्यक्ति को सदा ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही कार्य करते रहना चाहिए इस्लामी “शरीयत” आत्महत्या को वर्जित करती हुई कहती है कि तुम्हारा जीव वस्तुतः सर्वेश्वर की सम्पत्ति है और यह धरोहर तुम्हे इसलिए दी गई है कि तू सर्वेश्वर की नियत की हुई अवधि तक उससे काम ले, इसलिए नहीं कि तू उसे नष्ट कर दे। दूसरे शब्दों में जिन्दगी तो खुदा की दी हुई धरोहर है जिसकी रक्षा करना व्यक्ति का परम कर्त्तव्य है। आत्महत्या रना अल्लाह के वजूद के खिलाफ कत्ल से भी बढ़कर अपराध है। इस्लाम ने तो बड़े जोरदार शब्दों में आत्महत्या की भर्त्सना की है।

“तुम सुन चुके हो कि प्राचीनकाल के लोगों से कहा गया था, हत्या न करना और जो कोई हत्या करेगा वह न्यायालय में दण्ड के योग्य होगा।”

बाइबिल-मत्ती 5/21


रोमन साम्राज्य के पराभाव काल में सत आगस्तीन (सन् 354-430) ने यह मत प्रतिपादित किया कि बाइबिल-मत्ती-5/21 में जो कहा गया है कि तुम किसी की हत्या नहीं करोगे वह अन्य किसी भी हत्या और स्वयं की हत्या दोनों पर लागू होता है। इस कारण जो आत्महत्या करता है वह भी हत्यारा है। आगस्तीन बलात्कार के बाद किसी महिला द्वारा की गई आत्महत्या को भी पाप मानता है। उसने तो नारी जाति को यह कहकर सांत्वना दी कि यदि अपने शरीर का दुरुपयोग किया गया है तो भी उसके आध्यात्मिक मूल्य समाप्त नहीं हो पाते। निश्चित रूप से समाप्त में पीड़ा है जिसे व्यक्ति को भुगतना ही पड़ेगा । दण्ड और प्रशंसा देने का कार्य केवल ईश्वर को है। जिसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप ईश्वर की सत्ता के प्रति विद्रोह है।

धम्मपद में गौतम बुद्ध कहते हैं कि जो प्राणियों से हिंसा करता है वह आर्य नहीं होता, सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा का पालन करने वाला ही आर्य कहा जाता है। अंगुत्तर निकाय में वे कहते हैं कि जो प्राणी स्वयं हिंसा नहीं करता, किसी अन्य को हिंसा की ओर प्रवृत्त नहीं करता और किसी भी प्रकार के हिंसा का समर्थन तक नहीं करा वही धर्मयुक्त प्राणी है। चतुःशतक में उन्होंने “अहिंसा” शब्द में ही धर्म की विस्तृत व्याख्या की है। बौद्धधर्म यद्यपि ईश्वर के अस्तित्व को न मानता हो तथापि यह तो मानता ही है कि मनुष्य का जीवन प्रकृति की देन है और उसे किसी अन्य ने दिया है तो उस जीवन को नष्ट करने का अधिकार हमें नहीं।

आचारांगसूत्र में जैन तीर्थंकर यह उपदेश देते हैं कि किसी भी प्राण, पूत, जीव और सत्य को किसी प्रकार का परिवार उद्वेग अथवा दुःख नहीं देना चाहिए न किसी का हनन करना चाहिए। दशवैकालिकसूत्र में सभी प्राणियों के हित साधन में अहिंसा सर्वश्रेष्ठ होने के कारण महावीर ने इसे प्रथम स्थान दिया है। अहिंसा वह धुरी है जिस पर समग्र जैन आचार विधि धूमती है।

कनफ्युशियस की मान्यता है कि किसी व्यक्ति की अपने शरीर को नष्ट करने का अधिकार नहीं है केवल शरीर ही क्यों, शरीर के किसी भी अंग को नष्ट नहीं करना चाहिए क्यों कि शरीर तो उसकी माता पिता की दी हुई वस्तु है। इन सिद्धान्तों और चीनी संस्कृति के अनुसार आत्महत्या का अधिकार किसी को नहीं है।

शैव सम्प्रदाय, वैष्णव सम्प्रदाय, कबीर पंथ, संत साहित्य इत्यादि निखिल विश्व के सभी धर्म समप्रदाय, संत समुदाय एवं अन्य पंथ, वेद पुराण, बाइबिल कुरान एवं अन्य पंथ, वेद पुराण, बाइबिल कुरान एवं अन्य धर्म ग्रंथ का सार है -अहिंसा। अहिंसा सब आश्रमों का हृदय है और सब शास्त्रों का गर्भ अथवा उत्पत्ति स्थान । इसलिए मानवता के इस उत्पादक का अपमान अत्यंत निंदनीय है । तन, मन, धन और मन-वचन-कर्म से किसी भी जीव को लेश मात्र भी न सताना ही अहिंसा है। इसी कारण हत्या, नरहत्या और आत्महत्या इन सभी को हत्या कहा गया है। चूँकि अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा धर्म का मूल है और अहिंसा व्रत जीव का सबसे बड़ा आदर्श है, इसलिए आत्महत्या महापाप है।
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