Friday, March 9, 2007

लक्षण एवं सुझाव


हममें से लगभग प्रत्येक के मुँह से किसी-न किसी समय ये शब्द अवश्य निकले हैं, कि “हे सर्वशक्तिमान । मुझे अपने पास बुला ले और तमाम कष्टों से मुक्ति दिला दे ।” इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसने बेहद निराशा के क्षणों में कभी-न-कभी अपनी जिन्दगी से ऊब महसूस न की हो । प्रत्येक राहगीर रास्ता भूलता नहीं है। बिना पूछताछ के कोई भी यात्रा असम्भव है। इस भटकावपूर्ण स्थिति में दिशा-निर्देश नितान्त आवश्यक है। आज के इस अत्यन्त तीव्रगामी युग में तकरीबन हरेक मानव अपनी ही दुनिया में इतना व्यस्त है कि उसके पास समाज के इस वर्ग पर समुचित ध्यान दे सकने के लिए वक्त ही नहीं है।

आत्महत्या से पूर्व व्यक्ति विषयनान्तर्गत वार्तालाप करता है, तत्संबंधी साहित्य पढ़ता या लिखता है। वह अक्सर बोल-चाल में जाने-अनजाने कह जाता है कि मैं आत्माहत्या कर लूंगा, इससे तो अच्छा होता मैं मर जाता अथवा इससे तो अच्छा होता मैं पैदा ही नहीं हुआ होता । वह अपने आप को बेहद असहाय महसूस करता है या वह अपने जीवन को अत्यन्त सारहीन समझता है। वह अक्सर आत्महत्या के तरीकों के संबंध में पूछताछ करता रहता है। मृत्यु ,हिंसा, चाकू, छुरी तथा बंदूक के बारें में चर्चा करता रहता है। अचानक वह अधिक उदार हो जाता है और अपनी वस्तुओं को बाँटने लगता है। वह तीव्रगति से कम समय में अधिकाधिक लोलों से मिलने का प्रयास करता है और लोगों को अच्छा; अलविदा कहकर अथवा-‘किसी भी प्रकार से वह अन्तिम मिलन है-’ का संकेत दे देता है। यदि कोई बार-बार ऐसा करता हैं अथवा इनमें से कई तथ्य प्रकट करता है तब आप सचेत हो जाइये और उसके समक्ष यथासम्भव आशावादी विचार ही रखें, प्रतिउत्तर प्रस्तुत करें।

आपके मन में यदि निराशावादी विचार उत्पन्न हो रहे हों, आत्महत्या करने का विचार उत्पन्न हो रहा हो तो सर्व प्रथम आप किसी मनोचिकिस्सक के समक्ष अपने आप को प्रस्तुत करें । अपने आप को क्रमशः अधिकाधिक सक्रीय रखने का प्रयास करें। अधिक; और अधिक लोगों से मिलें । अधिक; और अधिक लोगों से बात करें । कभी भी किसी समय भी अकेला रहने की कोशिश न करें । आत्माहत्या के जितने भी सम्भावित साधन हैं अपने आप को दूर रखें । उन तक आप न पहुँचे या उनको अपने पहुँच से दूर रखें । कोई भी दो काम जो आपको सर्वाधिक पसंद हों दिन में कम से कम दो बार अवश्य कीजिए। पूजा पाठ, गीत-संगीत,नृत्य-वादन, पठन-पाठन, खेल-योगाभ्यास आदि-आदि में से । अपने आप को हमेशा व्यस्त रखें, ठहराव नहीं होना चाइए मन-मस्त रहें, व्यस्त-व्यस्त रहें; अस्त-व्यस्त नहीं ।

अमरीका के आत्मघात विज्ञान संगठन की 15 वीं वार्षिक बैठक के अन्तिम दिन न्यूयार्क शहर में 500 से अधिक आत्मघात विशेषज्ञ उपस्थित थे। कई दिन तक चलने वाली सभा की समाप्ति से पूर्व जब सभा संचालक ने श्रोताओं से प्रश्न करने के लिए कहा, तब पीछे बैठे लम्बे बालों वाले एक बेहाल नवयुवक ने खड़े होकर पूछा कि “क्या समाधि आत्महत्या की रामबाण औषधि नहीं है ?” सभा में उपस्थित महान् आत्माओं की दबी हँसी के बीच संचालक महोदय बोले कि “यह बड़ा रोचक प्रश्न है, किन्तु अब हमें बैठक समाप्त करनी चाहिए ।” उन्होंने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा-मुझे विश्वास है कि इस भाषण से हम सब लाभान्वित हुए हैं। नौजवान बैठने ही वाला था कि कर्नवर्न तत्काल माईक्रोफोन की ओर बढ़े । “मैं इस प्रश्न का उत्तर देना चाहता हूँ” कहते हुए उन्होंने बड़ी सावधानी और आदर के साथ उस युवक के प्रश्न का समुचित उत्तर दिया ।

आत्महत्या निवारण केन्द्रों में सर्वाधिक प्रसिद्ध “समारिटंस” है। ये केन्द्र सन् 1953 में उस समय प्रारम्भ हुए जब चौदह वर्षोया एक अंग्रेज लड़की ने पहली बार मासिक धर्म होने पर आत्माहत्या कर ली थी। अन्त्येष्टि के समय उपस्थित पादरी चैड वारा ने घोषणा की कि “संकट की घड़ी में मैं लोगों की समस्या जानने के लिए हर समय मिलूँगा ।” चैड वारा का ख्याल था कि बहुत से लोग डर के कारण अपनी बात नहीं कह पाते और जो मदद मिल सकती है, वह भी नहीं ले पाते । सन् 1975 के आसपास “समारिटन” की 165 शाखाएँ इंग्लैड में थी और उनमें 18000 स्वयंसेवक थे। अब तो “समारिटन” को दुनिया भर में शाखाएँ फैल गई है। 1990 के दशक में बम्बई में भी इस तरह की संस्था खोली गई है।

सामान्य चिकित्सकों को आत्मघाती प्रवृत्ति वाले लोगों का इलाज करने हेतु सबसे अच्छा अवसर मिलता है, किन्तु अधिकाँश चिकित्सक अपने जीवन में आत्महत्या सम्बन्धी शायद ही कभी कोई प्रवचन सुने होते हैं। लगभग 75 प्रतिशत व्यक्ति आत्महत्या से पूर्व के चार महीनों के दरमियान किसी-न किसी डॉक्टर के पास जातें हैं, लेकिन ये डॉक्टर इस सम्बन्ध में बहुत कम प्रशिक्षित होते हैं। आज प्रायः सभी चिकित्सक आत्महत्या को मानसिक स्वास्थ्य से सम्बद्ध समस्या मानते हैं, इसलिए यह मानकर चलते हैं कि मनः चिकित्सकों को आत्महत्या सम्बन्धी काफी जानकारी होगी, लेकिन उन्हें भी अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, क्योंकि आत्मघात की प्रवृत्ति एक लक्षण है, रोग का निदान नहीं।

बूस दाँतों का मत हैं कि पुलिस भी इस बारे में काफी प्रयत्न कर रही है। न्युयार्क शहर की आपातकालीन सेवा यूनिट के अधिकारी फ्रैंक मैलामर का कथन है कि हम अपने उपकरणों के साथ-साथ सद्-भाव, धैर्य व आदर भाव भी लेकर आते हैं। सन् 1982 में इस यूनिट को ऐसे 1661 मामले सौंपे गए, जिनमें मकानों से कूदने के कारण दुर्घटना होने की आशंका थी, इनमें से मात्र दस प्रतिशत ही घातक सिद्ध हुए । आत्महत्या विशषज्ञ अनुभव करते हैं कि प्राणाघाती उपायों तक पहुँच सीमित कर देने मात्र से भी आत्माहत्या करने वालों की संख्या घटेगी। जैसे-बंदूक, पिस्तौल आदि रखने पर नियन्त्रण, डॉक्टर की पर्ची के बिना दवाएं बेचने पर अपेक्षाकृत और अधिक नियन्त्रण, मीनारों आदि पर जाल की व्यवस्था। एक अध्ययन के अनुसार जिन 515 व्यक्तियों को कूदने से रोका गया उनमें से सिर्फ 25 लोगों ने ही आत्महत्या की।

अधिकांश व्यक्ति, सर्वगुण सम्पन्न या बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न तो नहीं, मगर कुछ प्रतिभा सम्पन्न जरूर होते है। यह बात और है कि उन्हें अपनी प्रतिभा को उजागर करने का अवसर नहीं मिल पाता । ऐसे व्यक्ति लगभग हर सम्भव जीवन जीना चाहते हैं। यदि जीवन में उन्हें कोई चीज नहीं मिल पाती तो वे किसी और से काम चला लेते हैं। अर्थात् और भी राहे या फिर तू नहीं तो और सही, और नहीं तो और सही, लेकिन आत्महिंसा की प्रवृत्ति वाले मनुष्यों में प्राप्त साधनों के बल पर दुनिया में जीने की क्षमता नहीं रहती । ऐसे व्यक्ति आपनी शर्तों पर ही जीना चाहते हैं, कोई अन्य समझैते अथवा समायोजन करने को वे तैयार नहीं होते । जैसे यदि तुमने मुझसे प्यार नहीं किया तो मैं आत्महत्या कर लूँगा । यदि अमुक समयावधि के अन्दर मुझसे सम्बन्धित अमुक समस्या का समाधान नहीं हुआ तो मैं आत्महत्या कर लूँगा । यदि तुम या तुम लोग मुझे इस कदर परेशान करते रहोगे तो मैं आत्महत्या के लूँगा। वगैरह-वगैरह।

अधिकाँश व्यक्ति उपरोक्तानुसार आत्महत्या करने की धमकी अथवा निम्नानुसार आत्महत्या करने की इच्छा के संकेत बातचीत के दौरान दे देते हैं। जैसे-अब तुम मुझे ज्यादा दिन नहीं देखोंगे। कल तुम या तुम लोग मुझे याद करोगे आने वाले कुछ दिनों में मैं गजब ढाने वाला हूँ। जिन्दगी के प्रति निराशावादी विचारधारा व्यक्त करना और खुद के प्रति नफ़रत जतलाना । बेचैनी, गहन हताशा या फिर आत्महत्या सम्बन्धी चर्चा करना। आदि-आदि । कुछ लोग अपने व्यवहार से भी आत्महत्या करने के संकेत दे देते हैं जैसे-अपनी प्रिय चीजों से लगाव न रहना । खाने-पीने तथा सोने-जागने की आदतों में बदलाव । पढ़ाई में एकाएक तेज हो जाना या अचानक पिछड़ना । डायरी लिखने में अधिकांश समय लगाना। सारे जरूरी काम द्रुतगति से निपटाना। अपेक्षाकृत अधिक चिड़चिड़ाना । आत्महत्या सम्बन्धी योजना बनाना । आत्महत्या करने का प्रयास करना, इत्यादि।

आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले लोगों को कभी-कभी मात्र इस बात से बड़ा भरोसा व विश्वास मिलता है कि कोई व्यक्ति उसके साथ है अथवा कोई उसकी सहायता करना चाहता है। कभी-कभी ऐसे लोग अपनी बात कहकर अपना दुःख हल्का करना चाहते हैं। इसलिए ऐसे लोगों की बात हमें ध्यान से सुनना चाहिए। वह जो कह रहा है उसे अनसुना नहीं करना चाहिए। अगर उनकी बातें बिना सिर-पैर की हैं तो भी उनसे बहस नहीं करना चाहिए । यदि उनकी बात परस्पर विरोधी है तो भी विषय नहीं बदलना चाहिए। आत्महत्या सम्बन्धी उनकी दलीलों को जीतने की कोशिश नहीं करती चाहिए । उन्हें कभी चुनौती नहीं देनी चाहिए। उनके समक्ष बहुत शांत रहना चाहिए और उन्हें केवल सांत्वना देनी चाहिए।

आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति के प्रति कभी आलोचनात्मक रवैया मत अनपाइए। आत्महत्या का प्रयत्न करने का चाहे जो भी तरीका रहा है, सम्बन्धित व्यक्ति शोक अथवा सदमें की स्थिति में होगा। ये व्यथित लोग अपनी निंदा किये जाने या सजा दिये जाने से डरते हैं, इसलिए उनकी निंदा मत कीजिए और उनकी स्थिति के बारे में किसी प्रकार का कोई मजाक मत कीजिए । उसे आश्वासन दें। उसे शांति व सद्भावनापूर्वक बताएँ कि उसकी इस हरकत का दूसरों पर क्या असर पड़ सकता है। यदि आवश्यक हो तो अन्य लोगों से भी मदद लें।

हकीकत में आत्महत्या का प्रयत्न एक प्रकार से सहायता की अपील है। यह एक संत्रस्त व्यक्ति का समाज से यह कहने का तरीका है कि वह उसे वर्तमान दुःखद स्थिति से निकाले । सभी प्राणियों में जीवन रक्षा की प्रवृत्ति इतनी मजबूत होती है कि वे मरना नहीं चाहते । अवचेतन मन में वे आशा करते हैं कि उन्हें समय रहते बचा लिया जाये । यदि सहायता की पुकार का कोई असर नहीं हुआ या फिर तत्संबंधी समस्या का समाधान नहीं किया गया तो संबंधित व्यक्ति आत्महत्या का पुनः प्रयास करता है । एक महिला ने आत्महत्या से पूर्व 11-11 बार आत्महत्या का प्रयास किया था। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इससे सहयोग व सहानुभूति के साथ व्यवहार किया जाए और यह जरूरी है कि ऐसे व्यक्ति को कभी भी किसी भी समय अकेला न छोड़ा जाए।

सम्भवतः आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की स्थिति उस शराबी के समान ही होती है जो जानता तो है कि शराब बुरी बला है, लेकिन फिर भी वह पीता है। उसके अलावा जब नशे में रहता है तब भी वह जानता है कि कुछ ज्यादा ही बोल रहा है, किन्तु वह अपनी जुबान को रोक नहीं सकता। एक पुलिस अधीक्षक आत्महत्या से पूर्व दो पत्र लिख गए हैं। पहले पत्र में उन्होंने पुलिस के दो उच्च अधिकारियों द्वारा की गई असहनीय डॉट-डपट का उल्लेख किया है और दूसरे पत्र में उन्होंने लिखा है कि मैं बहुत हतोत्साहित हूँ । आत्महत्या के बाद मेरी पत्नी, बिटिया तथा वृद्ध माताजी का क्या होगा ? उन्होंने महसूस किया है कि आत्महत्या के निर्णय से उनके परिवार में पत्नी, माँ आदि को भारी आघात पहुँचेगा तथा वे इस तरह उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी पूरा नहीं कर रहे हैं, लेकिन मानसिक तौर पर समझ नहीं पा रहे हैं कि लगातार बढ़ते पागलपन को कैसे रोकें ? वे जानते है कि उनके इस निर्णय से उनकी छबि और गिरेगी, लेकिन उनके समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें ? अतिरिक्त जिलाधीश के मतानुसार यदि उनकी पत्नी उनके साथ होती तो वे शायद आत्महत्या नहीं करते।

मई एवं जून के महिनों में छत्तीसगढ़ अंचल के रायपुर, रायगढ़, चांपा तथा सक्ति आदि के नाम छत्तीसगढ़ तथा भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में सर्वाधिक गर्म शहरों की सूची में कई बार अंकित रहे हैं । इस गर्मी से उत्पन्न तपन, जलन, बेचैनी और व्याकुलता एक क्षेत्रीय महोदय के लिए सहनशक्ति से बाहर की बात बनती जा रही थी । वे केवल गर्मी के महिनों में अपनी विभिन्न हरकतों और शब्द संकेतों के माध्यम से अनेकानेक बार बता चुके थे कि उन्हें जीने की इच्छा नहीं होती तथा एक न एक दिन वे आत्महत्या कर ही लेंगे । उन्होंने जो 24 वर्ष के थे, अन्ततः आत्महत्या कर ही ली। यदि उनके सम्बन्धी गर्मी के मौसम के लिए ही प्राकृतिक या कृत्रिम साधनों से ठण्डक की व्यवस्था कर देते तो सम्भवतः वे रेल से कटकर आत्महत्या नहीं करते ।

एक महिला आरक्षण के विरूद्ध अपने पति के तर्कों पर तो ध्यान देती रहीं, किन्तु आग लगाने के एक घण्टा पहले जब उनकी बेटी ने आत्मदाह करने की इच्छा व्यक्त की तब उन्होंने- “जो तुम्हारे मन में है, उसे तत्सम्बन्धी जिम्मेदार व्यक्ति को जाकर बताओ, मौत कोई हल नहीं--” कहते हुए हँसकर टाल दी, जबकि उनकी बेटी की बात आत्महत्या की प्रवृत्ति का स्पष्ट संकेत था। यदि वे अपनी बेटी की बात को बड़ी गम्भीरता से लेती और उस पर कड़ी निगरानी रखतीं तो वह सम्भवतः आत्महत्या नहीं करती।

आत्महत्या करने वाले लोग यह सोचते हैं कि जीवन मुसीबतों का एक पुलिंदा और मृत्यु शाश्वत शांति । उनका यह सोचना भूल है कि उन्हें शांति मिल ही जाएगी। अचूक से अचूक निशानेबाज भी कभी-न-कभी चूकता ही है। आत्महत्या का कोई उपाय ऐसा नहीं है जो बिल्कुल अचूक हो । आत्माहत्या के अचूक से अचूक तरीके से भी चूक सम्भव है। अंग-भंग अथवा अपंग सम्भव है। एक 12 वर्षीय बच्चे का जिगर नींद की अधिक गोलियाँ खा लेने के कारण बिल्कुल खराब हो गया है, जिसका जिगर खराब हो ऐसा व्यक्ति एकाएक नहीं मरता । उसका सारा शरीर पीला पड़ जाता है और अंत बड़ा कष्टदायी होता है। एक 24 वर्षीय नवयुवक ने अपने सिर में गोली दागी थी । अब वह एकग ही टाँग से चलता है। उसकी एक बाँह बेकार हो गई है। वह एक कान से बहरा और एक आँख से अँधा है। एक 15 वर्षीय युवक ने बिजली के झटके से आत्महत्या करतने की कोशिश की थी। उसकी दोनों बाँहें बेकार हो गई हैं। एक अच्छा खासा समझदार व विनोदप्रिय व्यक्ति की एक इमारत से छलाँग लगाने से मरने की इच्छा तो पूरीनहीं हुई, ऊपर से उसके दिमाग का मलीदा (चूरमा) बन गया। अब उसकी मानसिक स्थिति अस्पष्ट रहती है, उसे दौरे पड़ते हैं, वह लड़खड़ा कर चलता है। अब उसे हमेशा देखभाल की जरूरत पड़ेगी । इसी प्रकार अधिकाँश आत्महत्या के प्रयास सफल नहीं हो पाते। आत्महत्या के बेहद कारगर तरीके अपनाने के बावजूद वे नहीं मर सकते। आत्मघाती प्रवृत्ति वाले लगभग सभी व्यक्ति यही सोचते हैं कि अब तो हम यूँ ही बड़ी आसानी के साथ मर जाएँगे और हमें मरने के बाद ही चैन मिल ही जाएगा, लेकिन यह कोई नहीं सोचता कि असफल आत्महत्या या मरने (सफल आत्महत्या) के बाद भी तैन न मिले तब कहाँ जाएँगे ?
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